चेहरे पर चेहरे,चेहरे पर चेहरे
राज़ छुपाये ये बहुत गहरे
कोई इन चेहरों की परतें उतारे
तो मिलेंगे चेहरे इतने सारे
ज़िन्दगी बीत जाए इन्हे गिन्ते गिन्ते
गिनती ही भूल जाएं इन्हे गिन्ते गिन्ते
कुछ चेहरों पर है झूठी मुस्कान
तो कईयों पर है आंसू बेईमान
कुछ बोलें ऐसी वाणी
ज़हर पिला दें समझाके पानी
हैवान भी इनसे कुछ अच्छे हैं
जो जुबां के तो सच्चे हैं
छल और कपट के ये सब रिसाव
झूठ और सिर्फ़ झूठ के हैं ये भाव
मन करे उन चेहरों को उतार फेकूं
मुखौटों को मैं काश जलता देखूं
रह जाए फिर बस एक ही चेहरा
जिसमे ना हो कोई राज़ गहरा..जिसमे ना हो कोई राज़ गहरा....
Friday, April 03, 2009
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5 comments:
Nice
tuzi kavita??
fundoo ahe...
aur milega aisa chehra..
tension mat le mamu... :)
@mohsin: thank you sire!!! :) Tension koi nahi le raha re....some thoughts that were put into words....;)
hats off
@chips : thenks!!
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