Saturday, May 08, 2010

अन्धकार.....

अन्धकार कभी-कभार अधिक भाता है
सब साफ़-साफ़ नज़र आता है

सब का हो जाता एक ही ढंग
और होता सभी का बस एक ही रंग
इंद्रधनू भी काला, केसू भी काला
रंगों में फर्क, न कोई बतानेवाला

हिरा कोयला बन जाए एक सामान
अन्धकार के साए में हैं दोनों पाषाण
यदि करोगे आँखों से तोल
लगेंगे दोनों उतने ही अनमोल

ऐसे अन्धकार से क्यों डरूं मैं
प्रकाश की पट्टी उतार फेंकूं मैं
स्वच्छ, प्रखर, निखर अन्धकार
निष्पक्षता का है आधार

उजाला फंसाए भ्रम और मिथ्या के जाल में
अन्धकार दिखाए सत्य, ऐसी हाल में
अन्धकार तब अधिक भाता है
जब उजाले से कुछ ज्यादा दिखाता है

अन्धकार कभी-कभार अधिक भाता है
सब साफ़-साफ़ नज़र आता है

6 comments:

Chirayu said...

Very nice.....

Mukta said...

Vivek....... amazing , khoopach chhan...... kuthun chhaple ?? :D :D :D

Pappul said...

waah ... i need to call u it seems :P

emanish said...

Nice !
-eManish

Charuta said...

Hey Vivek long time and what a comeback post!! Be sure to post often

vivek said...

@Chirayu - thengs
@Mukta - nantar saangto kuthun chhapla.:P

@Patrick - Hehe...:)
@eManish - Thanks, wuts the history behind the 'e' in eManish.
@Charuta - Will try to post more. :) Flip side is i will be cribbing more in all probability :)