अन्धकार कभी-कभार अधिक भाता है
सब साफ़-साफ़ नज़र आता है
सब का हो जाता एक ही ढंग
और होता सभी का बस एक ही रंग
इंद्रधनू भी काला, केसू भी काला
रंगों में फर्क, न कोई बतानेवाला
हिरा कोयला बन जाए एक सामान
अन्धकार के साए में हैं दोनों पाषाण
यदि करोगे आँखों से तोल
लगेंगे दोनों उतने ही अनमोल
ऐसे अन्धकार से क्यों डरूं मैं
प्रकाश की पट्टी उतार फेंकूं मैं
स्वच्छ, प्रखर, निखर अन्धकार
निष्पक्षता का है आधार
उजाला फंसाए भ्रम और मिथ्या के जाल में
अन्धकार दिखाए सत्य, ऐसी हाल में
अन्धकार तब अधिक भाता है
जब उजाले से कुछ ज्यादा दिखाता है
अन्धकार कभी-कभार अधिक भाता है
सब साफ़-साफ़ नज़र आता है
Saturday, May 08, 2010
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